शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

प्रतीक्षा (जब ७०वे साल मे प्रवेश करून्गा तब उन्हे यही कविता भेट करून्गा)

नयन अभिशप्त है,
प्रतीक्षा मे तुम्हारी चिरकाल तक!
मूक अधर की इस व्यथा को मै क्या बताऊ,
जो लिखा है जन्म से इसके भाल पर !
रीते शब्द है कोष से ,
मन आचवन को अब आतुर हुआ !
सान्ध्य के क्षणो मे ऐ सखे,
तुम्हारे दरश को ना जाने क्यो? मन व्याकुल हुआ!



प्रिये, पद पद्य का अभिषेक करने तेरे ,
रूह ने ना अब तक आस छोडी!
व्यर्थ होती कहा प्रतीक्षा प्यार की कभी,
सोच झुर्रियो ने नही आज तक उपवास तोडी !
आन्सुओ से भीगते अधर कापते रहे उम्र भर,
पर एक क्षण को ना इसने चातक सा अपनी प्यास तोडी.



बस अब तो धैर्य के पथ पर,
अहिल्या सा शिला बन.
तेरे आगमन की राह तकते,
शून्य को निहारता हू.
प्रणय के दो पुष्प अन्जलि मे रख,
इस नश्वर देह से मुक्त करने तुझे पुकारता हू.


अनुरोध इक जरा,
आकर मेरे रूह को पन्कज से नयन मे कैद कर लो.
घून्घट मे मुझको छिपा लो,
या फिर इक बार आन्सुओ की बून्द मे भर लो.
मै अकेला चलता थक गया हू,
मुझको अन्ग मे भर लो या फिर सन्ग मेरे,
अब महाप्रयाण का सफर कर लो.

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